जब लौं चलत चुनाव को मौसम
जब लौं चलत चुनाव को मौसम,
एनईं पछयाये फिरत जे नेता,
बोटन के काजें, कुर्सी के लाजें,
मीठो सीरा बनकें बेटा,
चील घाईं मंडराउत नेता |
जब लौं सटत न अपनों मतलब,
देत प्रलोभन सांसऊं तब तक |
मार-काट है इनको धंधो,
कुचाल को मैलो सागर गंदो |
घर-घर आएँ, बाजा बजाएँ-
‘जो बटन दबाएं हमाए चिह्न पे,
न्याय मिले उए झट्ट सें |’
औ न जाने का-का तिगडम लगाएँ |
पाँच साल में कभऊं न देखे,
एकदम सें आऊत उनें जनता की चेता |
घोर कलजुग आ गओ भैया,
सबखों पागल बनाएँ नेता |
जब लौं चलत चुनाव को मौसम,
एनईं पछयाये फिरत जे नेता |
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’