कविता

जब लौं चलत चुनाव को मौसम

जब लौं चलत चुनाव को मौसम,
एनईं पछयाये फिरत जे नेता,
बोटन के काजें, कुर्सी के लाजें,
मीठो सीरा बनकें बेटा,
चील घाईं मंडराउत नेता |
जब लौं सटत न अपनों मतलब,
देत प्रलोभन सांसऊं तब तक |
मार-काट है इनको धंधो,
कुचाल को मैलो सागर गंदो |
घर-घर आएँ, बाजा बजाएँ-
‘जो बटन दबाएं हमाए चिह्न पे,
न्याय मिले उए झट्ट सें |’
औ न जाने का-का तिगडम लगाएँ |
पाँच साल में कभऊं न देखे,
एकदम सें आऊत उनें जनता की चेता |
घोर कलजुग आ गओ भैया,
सबखों पागल बनाएँ नेता |
जब लौं चलत चुनाव को मौसम,
एनईं पछयाये फिरत जे नेता |
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।