भँवर जाल
निगाहें ढुँढती थी तुम्हें
धुन्ध में समन्दर की ओर
तुफाँ पल में गुजर गई थी
विनाश की देकर एक शोर
सब कुछ उजड़ गया था पल में
एक पल में उजड़ गई मेरी जहाँ
कुछ ना छोड़ गया वो जालिम
बचा था सिर्फ यादों की ये जुवॉ
बेवफा हो गई थी तुम्हारी
तेरी मोहब्बत की सारी कसमें
जो पल कभी बिताये थे हमने
कभी प्यार की सुनहरी लम्हें
वो कलियों का गुलशन में महकना
वो मधुकर का गुनगुनाना
सुलग जाती थी अपनी तन मन
वो मधुमास की जवॉ यौवन
कोई कह दो हमें ना बुलाये
गुलशन को भी ना बताये
ना झेल पायेगें गम का
वो लम्हें जो हमने है खोये
जुल्फों की तेरी भँवर जाल में
फँसाया था तुने कभी हमको
वो तेरा प्यारा गुफ्तगू
सहलाया था दिल को तुँने
रूसवाई हो रही है मेरी
प्यार जगत में बुरा हाल मेरा
काश I ये प्यार जग में ना होता
ना बनता मैं अब बेहाल
— उदय किशोर साह