घोषणा-पत्र का दौर
कई राज्यों में चुनाव का माहौल जोर पर चल रहा हैं,हर पार्टी की चुनावी घोषणा पत्र जारी हो रहा हैं। सच कहे चुनावी घोषणा पत्र को पढ़ने में बहुत मजा आता हैं,
मुफ्त-मुफ्त का नारा सुनकर मन अत्यधिक प्रफुल्लित हो जाता हैं,
जनकल्याणकारी योजनाओं को पढ़कर शरीर के रोये रोमांचक होकर तांडव करने लगता हैं।
यकीनन मानो घोषणा पत्र किसी दिव्य स्वप्न से कम नही हैं,
कर्जमाफी को सुनकर ह्रदय से मुख मंडल तक सिर्फ मुस्कुराहट का राज होता हैं।
कल जैसे ही पक्ष और विपक्ष का घोषणा पत्र जारी हुआ, पढ़कर बहुत अच्छा लगा
अरे अभी कल ही इस घोषणा पत्र कही देखा था।
याद आ जाता हैं कि पिछ्ले 5 साल पहले कुछ ऐसे ही गरीब, किसानों और अल्पसंख्यकों की उन्नति के लिये बहुत सारे मुफ्त योजना लांच किया गया था।
गरीबी को मिटाने की बात 1947 की चुनाव से हो रहा हैं,
कितने गरीब निपट ही गये होगे
इस घोषणा पत्र के हसीन सपने को देखकर,
पहले चुनाव के वक्त विकास की कुछ बात ही मायने रखते थे मगर अब तो फ़्री का दौर चल रहा हैं,
मतलब नोचकर खाने की पुर्ण व्यवस्था की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
यदि मुझसे सवाल पूछा जाये कि किस पार्टी का घोषणा पत्र बढ़िया हैं,
मेरा जवाब रहेगा जब सपने ही दिखाना तो खुलकर दिखाओं
क्यो कि वक्त चमक धमक का युग चल रहा है।
फिलहाल चुनाव बाद यही मानव कल्याण घोषणा पत्र कबाड़ी के यहां थोक के भाव से देखने को ज्यादा मिलेगा।
— अभिषेक राज शर्मा