कविता

ख़ामोशी

माँ की स्निग्ध कोख में,
अंधेरे में है ख़ामोशी।
गाँव के कोने के मंदिर के,
पीपल वृक्ष के तले है ख़ामोशी।
पंछियाँ चहचहकने से पहले,
पूरी प्रकृति में है ख़ामोशी।
क्षितिज के नीचे,
गहरी, सुनहरी अंबुधि में है ख़ामोशी।

मरूस्थल के बीच के,
छोटे नखलिस्तान में है ख़ामोशी।
तारे टिमटिमाते हुए,
काले नभ में है ख़ामोशी।
ख़ुशी की ख़बर सुनकर,
हँसने से पहले है, एक पल की ख़ामोशी।
नींद में देखा जाए तो ख़्वाब,
उसमें भी है बहुत गहरी ख़ामोशी।

पर किसी की खटखटाहट से,
गायब हो जाए तो यह ख़ामोशी,
तब अचानक ख़ामोशी की जगह,
लेगी एक सनसनी।

सिनालि पतिरण

मैं श्री लंका से सिनालि पतिरण हूँ। अपनी हिंदी की बी.ए. डिग्री खत्म करके मैं अब हिंदीं में मेरी एम.फ़िल डिग्री का अध्ययन कर रही हूँ। साथ में श्री जयवर्धनपुर विश्वविद्यालय,श्री लंका में अस्थायी सहायक हिंदी प्राध्यापिका के रूप में काम कर रही हूँ। उसके अलावा श्री लंका के सिंहल भाषी छात्र-छात्राओं को हिंदी भाषा पढ़ा रही हूँ।