ग़ज़ल
कोई राह मिलती नहीं है कहीं तक,
जिंदगी की शाम अब ढलने लगी है।
हर शख्स हैरान परेशान है दिखता,
आईने को भी अब तो फुरसत नहीं है।
दगाबाज चेहरों की रौनक तो देखो,
वफा की किसी को जरूरत नहीं है।
रिश्तों को ज़हरीली मुस्कानों ने घेरा,
जज़्बातों की अब कोई कीमत नहीं है।
काम आती नहीं दुआ अब किसी की,
मौत ही मौत है जिंदगी का मंजर नहीं है।
— कल्पना सिंह