कविता

अनुभूति

वह तख्त अभी भी
पड़ा है उसी कमरे में
जिस पर कभी
लेटती थीं अम्मा हमेशा,
बांचती थीं सुख सागर
गीता और मानस के पृष्ठ
जपती थीं सुबह-शाम
तुलसी की माला।
अब मैं जब कभी
बहुत थक जाता हूं
जीवन के द्वंद्व और झंझावातों से
जूझते-लड़ते हुए
या कभी होता हूं निराश-निस्तेज
उद्विग्न, उदास, उत्साहरहित
तब सीधा आकर लेट जाता हूं
उसी तख्त पर
मां की गोद की तरह।
तब महसूसता हूं चेहरे पर
मां का आंचल
पसीने की बूंदें पोंछता हुआ
और सिर पर वही आशीषते
कोमल खुरदुरे हाथ की छुअन
जैसे बचपन में स्कूल से लौटने पर
या रात को बुरा सपना देखने पर
अम्मा छिपा लेती थीं
अपने आंचल में।
तब भर जाता हूं अंदर तक
एक असीम ऊर्जा-उत्साह से
धैर्य, आशा-विश्वास, मधुरता
अभय, आनंद और शांति से,
और तब हो जाता हूं
बिल्कुल तरोताजा, खिला-खिला
उगते नवल सूरज की तरह।

— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]