कविता

मुखौटा

आजकल का इंसान
कई मुखौटो में नजर आता है
प्यार मुहब्बत यारी दोस्ती
दिखावे के नींव पर है खड़ी
कहने को तो इंसान
ईश्वर की सर्व श्रेष्ठ कृति है
बनावट और मुखौटो में
गुम हो गए असली चेहरे!
खुश रहने का दिखावा
अच्छा होने का दिखावा
धार्मिक होने का दिखावा
देश प्रेम का दिखावा
इस दिखावे की भूल-भुलैया में
खो गया इंसान का वजूद कहीं!
कहते हैं जिसे सोसल होना
इंसानियत के मूल्यों  पर  है सजा
इस दिखावे के नींव पर
समाज की इमारत है खड़ी!
सच्चाई ईमानदारी वफादारी
महज किताबी शब्द रह गए हैं
ईमान धर्म तो हर कदम पे बिकते हैं
सत्ता की दुकान इसी पर चलती है
सत्ता के नुमाइंदों ने
झूठ और मक्कारी का
ऐसा जाल बिछाया है
सच्चाई और ईमान
कहीं लहूलुहान पड़ी है!

— विभा कुमारी” नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P