उज्ज्वल भविष्य की राह देखता “बलूचिस्तान”
प्राकृतिक संसाधनों से भरे-पूरे पाकिस्तान के पश्चिमी प्रान्त “बलूचिस्तान” की दयनीय स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। 14 अगस्त 1947 को जन्मे पाकिस्तान ने स्वतंत्र शासन की चाह रखने वाले बलूचिस्तान पर सन 1948 में सेना के दबाव से कब्जा तो कर लिया, लेकिन विकास के नाम पर बलूचिस्तान को हमेशा दरकिनार ही रखा। बलोचवासी शुरू से ही पाकिस्तानी सेनाओं के अत्याचार से त्रस्त रहें है। समय-समय पर अनेक विद्रोही संगठनों ने इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई है! यहां की आम जनता ने भी न जाने कितने शांति मार्च किये लेकिन इन सबके बदले बलूचिस्तान को सिर्फ आतंकवाद, शोषण ,अत्याचार व नस्लीय भेदभाव ही नसीब हुआ। इस क्षेत्र के विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मिले अरबों रुपये पाकिस्तान ने आतंकवाद के विकास व नफरत फैलाने में खर्च कर दिए। आज बलूचिस्तान की गिनती पाकिस्तान के सबसे पिछड़े इलाकों में होती है। ईरान व अफगानिस्तान से सीमा बनाने वाला यह प्रान्त शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य मूलभूत सुविधाओं के आभाव और आजादी पर प्रतिबंध लगने के कारण पाकिस्तान से पृथक होकर राष्ट्रवादी माहौल से ओतप्रोत राजनीतिक स्वायत्तता हेतु एक नया देश बनाने की मांग कर रहा है। 1 करोड़ 23 लाख की आबादी वाला बलूचिस्तान, पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 40% होने के बावजूद आज सबसे दयनीय स्थिति में है। यहां पुरुषों में 38% व महिलाओं में 13% साक्षरता दर है, ग्रामीण क्षेत्रों में हर 10 में से 9 बालिकाएं स्कूल से बाहर हैं। इन क्षेत्रों से महिलाओं व बच्चों की तस्करी, जबरन बाल विवाह और यौन अपराधों के मामले भी बहुत संख्या में समाने आतें रहें हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो सालों में यहां 5 लाख से अधिक लोगों के सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न हुई है। खाने पीने की वस्तुओं के दाम अपने उच्चतम स्तर पर हैं। हालिया कुछ वर्षों में चीन ने भी अपने नापाक इरादों से इन क्षेत्रों में अपनी दखल बढा दी है। टूरिस्ट डेस्टिनेशन, प्राकृतिक गैस, कोयला, सोना, तांबा व ग्वादर बन्दरगाह जैसे संसाधनों से युक्त होने के बावजूद यहां कृषि सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं का विकास अबतक नही हो पाया है। ऐसे ही कई गम्भीर समस्याओं से जूझते बलूचवासियों ने उज्ज्वल भविष्य की कामना में कई दशक बिता दिए, लेकिन हालिया पाकिस्तानी सेना व बलूच विद्रोहियों के बीच भी हुए संघर्षों ने यह सिद्ध कर दिया है कि बलूचिस्तान ने पाकिस्तान से अलग होने के लिए कमर कस ली है। BLA, BLF व BRP जैसे कई अलगाववादी संगठन तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान व ईरान के बलूच इलाकों को मिलाकर “आजाद बलूचिस्तान” बनाने की मांग कर रहें है। ‘मीर सुलेमान दाऊद जान’ जैसे कई बड़े बलूच नेताओं का मानना है कि यदि यहां जनमत संग्रह हो तो 90% से अधिक जनता पाकिस्तान से छुटकारा चाहेगी। बीते दिनों बलूचिस्तान के नास्की व पँचगुर में पाकिस्तानी सेना पर हुए हमले में, सभी अलगाववादी संगठनों की एकता और पाकिस्तानी सरकार के विरोध में बढ़ते प्रदर्शन से यह प्रतीत हो रहा है कि इमरान सरकार बलूचों पर अपना विस्वास खोती जा रही है। सन 1971 में पाकिस्तान से टूटकर नया राष्ट्र “बांग्लादेश” बनने के पीछे जो भी मूलभूत कारण थे वही आज बलूचिस्तान के साथ भी हैं। अलग देश बनते ही बांग्लादेश ने आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक स्तर पर तेजी से तरक्की शुरू कर दी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान बनाई है। अंत मे उम्मीद यही की जा सकती है कि बलूचिस्तान वासियों का यह संघर्ष उनके लिए भी एक बेहतर कल लेकर आएगा।
— गौरव कुमार