मुक्तक/दोहा

ऋतुराज वसन्त के मुक्तक

(1)
गाँठ मन की खुल गई,मधुमास सुखकर लग रहा।
गुल खिले हैं ख़ूब ही,अवसाद डर से भग रहा।
हैं सतातीं दूरियाँ,अति मिलन,अनुराग तो अब,
प्रेम का आवेग है,रस,छंद,मधुरस जग रहा।।
(2)
यह कहा मधुमास ने,अब तो बलम से बात हो।
दूरियाँ मिट जाँय अब ,मिलने सुवासित गात हो।
फूल हैं सब दिल जले,दे रहेे संगम की सीख,
दिन बनें खुशबूमयी,अनुबंधमय अब रात हो।।
(3)
प्रीति ने जब कुछ कहा,मौसम सुहाना हो गया।
संत का भी दिल खिला,वह भी दिवाना हो गया।
लग रहा मधुमास प्रिय,अनुगीत दिल को भा रहे,
प्रेम का जल गंग है,जिसमें नहाना हो गया।।
(4)
ये वसंती पल भले,देखो सभी को भा गए।
दिल भरी रंगीनियाँ,अरमान मानस छा गए।
गीत गूँजे प्रेम के,मौसम लुभाने आ गया,
उपवनों से आँगनों ,मधुमास को बिखरा गए।।
(5)
शीत है कम,ताप भाता,जोश में उपवन हुए।
सब दिलोंं में प्रीति है,सबके रसीले मन हुए।
आज पल बहका रहा,नित कोयलों के गान हैं,
ज़िन्दगी है रस भरी,अहसास वाले तन हुए।।
(6)
बाग़ में रौनक दिखी,हर एक मस्ताना हुआ।
भर गए दिल प्रीति से,इनसान दीवाना हुआ।
कामिनी लगती शमां,प्रेमी सभी बौरा रहे,
यह वसंती दौर है,मन आज परवाना हुआ।।
(7)
दिल मचलता आज तो,मौसम युवा लगने लगा।
राधिका के रंग में,कान्हा ख़ुदी रँगने लगा।
उपवनों में है खुशी,दिल में पली है शुभ दुआ,
प्रेम आतुर हो युवा,उल्लास में पगने लगा।।

— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]