श्रद्धा भक्ति विश्वास का केंद्र माघी मुर्णिमा मेला”
माघ पूर्णिमा का भारतीय हिन्दू धर्म, संस्कृति में अपना एक अलग महत्व है।और इस पावन अवसर का हमारे धर्मावलम्बियों को,पुण्यात्माओं को,श्रद्धालुओं को,यहॉं तक की हमारे देवी-देवताओं सहित ऋषि-मुनि,साधु-संत सन्याशीयों को पूरे वर्ष भर प्रतीक्षा रहती है।और यह पावन अवसर माघी पूर्णिमा,जब आती है तो पूरे भारत के तीर्थ-स्थलों में,नदियों के संगम स्थलों में पौष माह के प्रतिपदा के दिन से ही श्रद्धालुओं, साधु संतों और देव् योनियों का पदार्पण और समागम होना शुभारम्भ हो जाता है।
जब ऐसे पुण्य आत्माओं का जब इस पावन धरती पर आगमन होता है।तो यह धरती धन्य हो जाती है।और जगह-जगह तीर्थ स्थल के रूप में परिवर्तित हो जाती है।पूरी धरती के कण-कण में स्तुति,आराधना,उपासना के गीत-संगीत गूंजने लगते हैं।
मंदिरों में आरतियाँ,शंख की सुमधुर ध्वनि,घण्टियों की निनाद,श्लोक-मंगलाचरण का उच्चारण होने लगता है।और यह अपने आप दशों दिशाओं में गूंजने लगती है।मंदिरों का कायाकल्प हो जाता है।कलश कंगूरों में पताका फ़हराने लगता है।
प्रकृति में हरियाली छा जाती है।बाग-बगीचों में रंगत आ जाती है।पुरवाई बहने लगती है।चारो दिशाओं में सौरभता छा जाती हैं।
और ऐसे में शुरू होता है “मेला-मड़ाई” का दौर।
हमारे छत्तीसगढ़ में मेले का विशेष महत्व है।जहाँ पर हमारी कला संस्कृति परम्पराएँ धर्म आस्था देखते बनती है।
मेले का अपना अलग ही महत्व है।जहाँ पर अनेक जाति धर्म स्वावलम्बी के लोगों का मेल होता है।साधु संतों का मेल होता है।चिर-परिचितों का मेल-मिलाप,मंगल परिणय नातों-रिश्तों का मेल-मिलाप होता है। मेले का शाब्दिक अर्थ ही है”मेल-मिलाप”। हमारे छत्तीसगढ़ में ऐसे पावन समय में माघी पूर्णिमा का मेला जगह-जगह में भराता है।
राजिम मेला;-
जिसमे सबसे पहला स्थान राजिम का मेला है। यहाँ पर नागा साधु संतों का जमावड़ा होता है और फिर संगम पैरी सोंढुर महानदी में साही स्नान का सीलसिला शुरू होता है। जहां पर राजीव लोचन और कुलेश्वर महादेव जी विराजमान हैं।ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी पधारे थे।जिन्होंने इसी संगम में भगवान शंकर की स्थापना कर उनकी पूजा अर्चना किये थे।
शिवरीनारायण का मेला;-
यहाँ भी ऐसी मान्यता है कि चौदह वर्ष के बनवास काल मे भगवान राम यहाँ पधारे थे जहाँ पर शबरी माता ने दोनों भाइयों को मीठे-मीठे बेर खिलाये थे।यहां पर भी संगम नदियाँ हैं महानदी शिवनाथ जोंक।जहाँ पर श्रद्धालुगण डुबकी लगाकर दीपदान कर पुण्य के भागी होते हैं।शिवरीनारायण दो राज्यों के आस्था का केंद भी है।ओडिसा से भगवान जगगन्नाथ चलकर शिवरीनारायण के मुख्य द्वार तक आते हैं।और इसी श्रद्धा के कारण दूर दराज से लोग भी लोट मारते हुए आते हैं और अपनी मनोकामना को पूर्ण करते हैं।
सोन कुंड का मेला-
गौरेला पेंड्रा मार्ग से बिलासपुर मार्ग में 17 किलोमीटर दूरी पर तीर्थ सोनकुण्ड स्थित है।यहॉं पर गुरु पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा पर भी मेला भराता है।यही पर सोनभद्र नदी का उद्गम क्षेत्र है और यही ग्राम सोन बचरवार सोनमुडा के नाम से प्रसिद्ध है।
बेलपान मेला;-
बेलपान मेला बिलासपुर जिला के तखतपुर के नर्मदा कुंड के पास मेला भराता है।यह 10 दिनों तक चलता है।माघी पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु नर्मदा कुंड में डुबकी लगाते हैं।और भगवान नर्मदेश्वर में जलाभिषेक करते हैं।और ऐसी मान्यता है कि यहां डुबकी लगाने से चर्मरोग से सम्बंधित बीमारियां दूर हो जाती है।
कर्णेश्वर मेला;-
कर्णेश्वर मेला जिला मुख्यालय धमतरी से 65 किलोमीटर दूर नगरी ब्लॉक के सिहावा में भराता है। यहॉं पर भगवान शंकर का श्रद्धालुगण जलाभिषेक करते हैं।कर्णेश्वर मेला देवुरपारा सिहावा के चित्रोतपल्ल महानदी के संगम स्थल पर श्रृंगी ऋषि पर्वत के नीचे 6 दिवसीय मेला भराता है।
मधुबन धाम का मेला;-
मधुबन धाम का मेला राजिम मेले के बाद शुरू होता है। यह मेला स्थल राजिम से 20 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में धमतरी जिला के ब्लॉक मगरलोड में स्थित है।यहॉं ऐसी मान्यता है कि भगवान राम लक्ष्मण 14 वर्ष बनवास के दौरान यहाँ से गुजरे थे।यहाँ भगवान श्री राम का मेले के दौरान कथा वाचन होता है।आसपास के लोग भारी संख्या में मेले में आते हैं। यहाँ अनेक जातियों के लोगो द्वारा हमारे हिंदुओं का भव्य मंदिर निर्माण कराया गया है जो हमारे लिए भक्ति और विश्वास का केंद्र है।
इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि हमारे छत्तीसगढ़ का मेला आस्था और विश्वास का केंद्र रहा है।जो छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक, और पारम्परिक विरासत को संजो कर रखा है।
— अशोक पटेल “आशु”