लघुकथा

सीता सी वामा

सैकड़ों लड़कियाँ देख चुके पर तुझे कोई लड़की पसन्द ही नहीं आती । लड़की देखकर जवाब नहीं देता और दो दिन बाद मना कर देता है । आखिर तुम्हारी पसन्द क्या है राम मनोहर !

राम मनोहर -“लड़की देखने के बाद छानबीन करने पर लड़की में वह समर्पित भावना नजर नहीं आती जो मैं चाहता हूँ माते ।”

शकुंतला -आश्चर्य करते – “समर्पित भावना से तुम्हारा क्या आशय है ?”

राम मनोहर – जैसे प्रभु राम के साथ सीता जी सारे सुख त्यागकर वनवास गई थी, ऐसी समर्पित भावना ।

शकुंतला – पहले स्वयं के बारे में विचार करो कि क्या तुम्हारा आचरण भी मर्यादित राम जैसा है ? तभी सीता सी समर्पित भावों की वामा की चाहना करना उचित होगा ।

इस पर राममनोहर विचारों में खो गया !

— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)