गंगोदक सवैया छन्द
हिन्द की रीति की प्रीति देखो जरा
विश्व सारा कुटुम्बी हमारा यहाँ |
मातु सी पत्नियाँ दूसरों की दिखें,
पापिनी वासना को बिचारा यहाँ ||
काम हो,क्रोध,हो,लोभ हो,मोह हो
गर्व हो, नर्क का मार्ग सारा यहाँ |
आत्म सा भाव रक्खें सभी जीव में
आपसी आपसी का सहारा यहाँ ||
जो सभी प्राणियों से रखे प्रेम को,
ईश संसार प्यारा सजाता उसे |
जो भलाई करे दूसरों की सदा,
ईश अच्छे भलों से मिलाता उसे ||
ध्यान सम्मान ईमान का जो रखे,
ईश भी कीर्ति प्रज्ञा दिलाता उसे |
जो बड़ों को झुके भाव श्रद्धा लिये
उम्र सौ साल की दे बिधाता उसे |
बोलिये दर्द का कर्ज किसपे नहीं,
ऋण चुका अश्रु का कौन पाया यहाँ |
लिप्त फिर भी पड़े भोग में बेशरम,
मानते हैं न अपना पराया यहाँ ||
लूटते निर्धनों को धनी ही सदा,
शोषणों का बबंडर नहीं मन्द है |
रोज बरबाद होते विलासी दिखें,
हों न व्यभिचार फिर भी कहीं बन्द हैं ||
— डॉ राजश्री तिरवीर