कुण्डली/छंद

गंगोदक सवैया छन्द

हिन्द की रीति की प्रीति देखो जरा
विश्व सारा कुटुम्बी हमारा यहाँ |
मातु सी पत्नियाँ दूसरों की दिखें,
पापिनी वासना को बिचारा यहाँ ||
काम हो,क्रोध,हो,लोभ हो,मोह हो
गर्व हो, नर्क का मार्ग सारा यहाँ |
आत्म सा भाव रक्खें सभी जीव में
आपसी आपसी का सहारा यहाँ ||

जो सभी प्राणियों से रखे प्रेम को,
ईश संसार प्यारा सजाता उसे |
जो भलाई करे दूसरों की सदा,
ईश अच्छे भलों से मिलाता उसे ||
ध्यान सम्मान ईमान का जो रखे,
ईश भी कीर्ति प्रज्ञा दिलाता उसे |
जो बड़ों को झुके भाव श्रद्धा लिये
उम्र सौ साल की दे बिधाता उसे |

बोलिये दर्द का कर्ज किसपे नहीं,
ऋण चुका अश्रु का कौन पाया यहाँ |
लिप्त फिर भी पड़े भोग में बेशरम,
मानते हैं न अपना पराया यहाँ ||
लूटते निर्धनों को धनी ही सदा,
शोषणों का बबंडर नहीं मन्द है |
रोज बरबाद होते विलासी दिखें,
हों न व्यभिचार फिर भी कहीं बन्द हैं ||

— डॉ राजश्री तिरवीर

डॉ. राजश्री तिरवीर

जन्म बेलगांव, कर्नाटक में हुआ हैं। आप मराठा मंडल कला और वाणिज्य महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं।आपने कर्नाटक से हिंदी में एम.ए, पी.एच डी, स्लेट , डी.लिट किया हैं। एम. ए में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने से कर्नाटक विश्वविद्यालय से आपको स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है। एक समीक्षा ग्रंथ (हिंदी के नाट्य काव्यों में मिथक) एवं एक काव्य नाटक (परित्यक्त लव-कुश) प्रकाशित हुआ हैं। छंद मंजरी काव्य संग्रह तथा ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होनेवाला है। राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित हुए हैं। दैनिक समाचार पत्रों में हिंदी, मराठी कविताएं प्रकाशित हुई हैं। कई राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में प्रपत्र प्रस्तुत किया है। अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद तथा अन्य संस्थाओं से २५ से अधिक सम्मान पत्रों से सम्मानित किया गया है।