ग़ज़ल
कट्टरता की आग लगाकर तड़का मजहब वाला ड़ाल
खाली दाल नही गलने की और ज़रा सा काला डाल
जंग सियासत की हैं इसमें सीधे का कुछ काम नही
लहजे में तल्खी बातों में थोड़ा मिर्च मसाला डाल
बात विरोधी के घोटालों की आए तो खुलकर बोल
अपनी बात करे कोई तो कस कर मुँह पर ताला डाल
पाँच बरस का वक्त मिलेगा जी भर नोट कमाने को
जनता की खाली थाली में तू भर पेट निबाला ड़ाल
देख मियाँ टोपी पहनी है उसने जाली वाली, तू
वक्त गँवाएं बिन केसरिया गमछा तुलसी माला डाल
वो बोला गर्मी में सर्दी का अहसास करा देगा
ट्वीटर पर तू भी स्टेटस कोई तगड़ा वाला डाल
जो कुछ भी गड़बड़ है पिछली सत्ताओं के कारण है
तुहमत मढ़ कर उनके सर पे सारा गड़बड़झाला ड़ाल
— सतीश बंसल