कविता

आशा निराशा

जिन्दा है जब आशा की काया
निराशा की सूरत पे मातम छाया
चेहरे की रौनक लौट कर है आई
जीने की चाहत ने ली  अंगड़ाई

घोर निराशा का था घनघोर अंधेरा
दिन को भी दीख रहा था नभ पे तारा
सूरज की किरणें भी थी मद्धिम मद्धिम
रास्ता रोक रहा था सब     अग्रिम

टुट चुका था जग में मेरा   हौसला
हल नहीं हो रहा था कोई भी मसला
कोई तरकीब काम ना था  आया
जीवन में था तब मायुसी   छाया

जग गई जब आशा की नई किरण
बंधु बाँधव से शुरू हुआ है मिलन
सफलता की लाली मुख पे है छाई
आशा ने नई आश है      जगाई

मन में उठता है अब नई तरंग
चारों दिशा में छाई है आनन्द
जीने की चाहत है अब  जागा
घोर निराशा है डर कर भागा

धैर्य ने दिया हिम्मत का   काम
जाग रहा है नई नई    आयाम
सुबह का सूरज है लेकर  आया
जीने की नई राह वो  दिखलाया

हिम्मत से लेना है हर काम
मिल जायेगा तेरा वो मुकाम
लेकर आयेगा सफलता की कुँजी
आसान होगा तेरी जीने की पुँजी

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088