गुलाब और काँटे
रहता काँटों संग मैं, मेरा नाम गुलाब।
जिसके हाथों में गया, लगे देखने ख्वाब।।
लगे देखने ख्वाब, प्रेम जोड़े हैं भाते।
करते जब इजहार, सदा मुझको वे लाते।।
खुशियाँ उनकी देख, नहीं कुछ मैं भी कहता।
काँटों का ये दर्द, सहन कर मैं हूँ रहता।।
देते हरदम साथ हैं, मेरे सच्चे यार।
रक्षा करते है सदा, और निभाते प्यार।।
और निभाते प्यार, कभी वे चुभ से जाते।
बैठे बनकर ठाठ, हाथ कोई न लगाते।।
काँटों की है बात, इसे कोई नहिँ लेते।
रखते हैं सम्भाल, साथ वो हरदम देते।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”