नैनागिरि शिल्पकला में आभरण
नैनागिरि शिल्पकला में देवी-देवताओं व परिकर के पात्रों को बहुत सूक्ष्मता और उत्कृष्टता से आभरणों से अलंकृत किया गया है। देवों ही नहीं गजों को भी विविध अलंकरणों से भूषित किया है। नैनागिरि की मूर्तियों से ही लेकर यहाँ कुछ आभरणों का विवरण इस प्रकारा है-
नूपुर- नूपुर पैरों का आभूषण है। यह विशेष रूप से स्त्री-पात्रों का आभूषण है, किन्तु पुरुष पात्रों चॅवरधारी आदि को भी धारण किये शिल्पित किया गया है।
हिजीरक- पादवलय- हिजीरक पैरों में पहनने का आभरण है। यह एक या दो कड़े जैसा होता है। यह नैनागिर के क्षेत्रपाल को पहने दर्शया गया है। यही पादवलय भी कहलाता है
चूड़ा – चूड़ा हाथों में पहिनने का आभरण है। स्त्री-पुरुष दोनों को ही इसे आभूषित किया जा सकता है। यहाँ यह बालक को कटि पर सम्भाले स्त्री को घारण किया गया है। उसे अम्बिका या भगवान की माता अनुमानित किया गया है। चॅवरधारी को भी दर्शाया गया है।
दुकूल- दुकूल अंगवस्त्र होता है जो स्कंधों पर या भुजाओं पर से लटकाया हुआ दर्शाया जाता है, किन्तु देवों और देवियों को अत्यधिक आभूषण युक्त दर्शाने के लिए इसका अभाव ही देखा गया है, कदाचित् भूषित करते हैं तो पास में लटकता हुआ ही दर्शाया जाता है, जिससे आभूषणों का प्रदर्शन भी होता रहे।
कटिमेखला- कटिमेखला कटि-कमर में धारण करने का आभरण है। इसके कई आकार दर्शाये गये हैं। एक लड़ होने से यही कटिसूत्र कहलाता है।
घर्घरमल्लिका – घर्घरमल्लिका कटिमेखला का ही परिवर्धित रूप है। इसमें कटिमेखला के अतिरिक्त घुंघरू आदि अधिक लगे होते हैं। नैनागिरि में परिकर में यक्ष-यक्षी और चामरधारियों को धारण किये हुए यह देखाी जा सकती है।
कांची- कांची कमरबंध का एक रूप है। यह कमर में धारण कर एक जगह कमर में बंधी होती है शेष कुछ नीचे को लटक कर प्रदर्शित होती है।
यज्ञोपवीत- अधिकतर शासन देवों और परिकरस्थ देवों को यज्ञोपवीत धारण किये दर्शाया जाता है। यज्ञोपवीत को ही जनेऊ कहते हैं।
कुण्डल- कुण्डल परिकर के स्त्री और पुरुष दोनों पात्रों को धारण किये हुए दर्शाया गया है। ज्यादातर पात्र आभरण रहित कानों वाले नहीं दर्शाये गये हैं।
कर्णोत्पल – कुण्डल में ही उत्पल लगा हुआ होने से वह कर्णोत्पल है। कर्णों में धारण करने का यह आभरण कर्ण फूल भी कहलाता है। यह देव और मनुष्य सभी स्त्री-पुरुष पात्रों को पहने दर्शाया गया है।
बेणी- स्त्री-पात्रों के बालों को बहुत सज्जित कर दर्शाया जाता है। नैनागिरि की स्त्रीपात्र के बालों में बेणी मुकुट के निचने स्तर से बांधते हुए पीछे से बगल में दर्शाया गया है। इसके बेलबूटे कलात्मक हैं। अन्यत्र बहुत कम सज्जित किया जाता है।
कंकण- रत्न-जडि़त कंगन ही कंकण हैं। नैनागिरि की मूर्तिकला में परिकर पात्रों के करों में धारण किये हुए यह प्रदर्शित किया गया है।
एकावली- एकावली मोती युक्त माला है। यह एक लड़ की होने से एकावली कहलाती है। देवों में भी निम्रजाति के पात्रों को यह धारण करवाई जाती है। नैनागिरि शिल्पकला में इसे देखा जा सकता है।
हार – हार गले में धारण किया जाने वाला वह आभरण है जिसमें एक से अधिक लडिय़ाँ होतीं हैं। इसे कई तरह से सुसज्जित किया जाता है। परिकर के यक्ष-यक्षी, भक्त, चॅवरधारी आदि को यह विभूषित किया गया है।
कंठिका- कण्ठिका प्राय: स्त्रीपात्रों को धारण किये हुए प्रदर्शित की जाती है। हार या एकलडिक़ा में कंठी लगी होने से कण्ठिका बन जाती है। अंबिका या पाश्र्व की माता को यह धारण करायी गई है।
उपग्रीवा- उपग्रीवा ग्रीवा अर्थात् गले से सटा हुआ आभरण होता है। कम से कम द्विस्तरीय होता है।
हीक्का सूत्र- हीक्का सूत्र गले में धारण करने का आभरण है। यह उपग्रीवा से बड़ा और हार से छोटा होता है। इसमें मणि-मौक्तिक लगे रहने से कलात्मक अधिक होती है।
किरीट- किरीट मुकुट का ही एक रूप है। यह मुकुट की अपेक्षा बड़ा और ऊँचाई लिये हुए होता है। मूर्ति-परिकर शिल्प या स्वतंत्र देव-शिल्प में यह आभूषित दिखाया जाता है। नैनागिरि-शिल्प में भी यह दर्शनीय है।
मुकुट- देवों को मुकुट पहनाया जाना आवश्यक है। मुकुट बिना देव, देव नहीं कहलायेंगे। स्थान या देव के स्तर के अनुसार मुकुट छोटा-बड़ा, अधिक कला, न्यून कलात्मक और स्त्री-पुरुष की अपेक्षा से शिल्पित किये जाते हैं।
कौस्तुभ मणी- कौस्तुभ मणी देवों के मुकुट-किरीट में बीच में सामने लगा होता है। यह बहुत कांतिमान होता है। परम्परागत रूप से तो इसे विष्णु को घारण किये हुए दर्शाया जाता है। माना जाता है समुद्र मंथन के समय चौदह मूल्यवान वस्तुओं में यह एक है।
अरुद्दाम – अरुद्दाम विशिष्टि आभरण है। इसके नाम से प्राय: मूर्ति वैज्ञानिक ही परिचित हैं। कटिमेखला, कटिबंध या मेखला में आगे को बंधा हुआ द्वि-त्रिलड़ रत्नगुच्छक युक्त यह आभारण उच्च जाति के देव-देवियों या राजाओं को भूषित दर्शाया जाता है।
मुक्तदाम- मुक्तदाम अरुद्दाम जैसा ही विशिष्टि आभरण है। यह भी कटिमेखला, कटिबंध या मेखला में आगे को बंधा हुआ गुच्छक या रत्नजडि़त कर्पट- गुच्छक है। यह दोनों जंघों पर अलग अलग लटका हुआ शिल्पित किया जाता है। इसे स्त्री और पुरुष दोनों देव और मानवों को घारण किये हुए दर्शाया जाता है। नैनागिरि-शिल् प में यह दृष्टव्य है।
वनमाला- वनमाला एक विचित्र तरह का आभरण है। यह मोटा सा कलात्मकता लिए हुए होता है, जैसे बड़े पुष्पों से सघन निर्माण किया जाता हो। इसका एक छोर देव-मूर्ति की भुजा से बंधा हुआ दर्शाया जाता है और पाश्र्व से लम्ब नीचे को लाते हुए दूसरा छोर घुटनों के नीचे दोनों पैरों में बंधा हुआ दर्शाया जाता है। पहले केवल इसे विष्णु की प्रतिमाओं में शिल्पित किये जाने की परम्परा रही है, उपरान्त अन्य देव-मूर्तियों में किया जाने लगा।