कविता

राजनीति के रंग

न हाथ रहा न हाथी
बिछड़े सब साथी
चाचा गया बुआ गई
चली गई बहु रानी
बनाई थी तिकड़म
जो पहले
अब न जमी वो बाजी
पकड़ी हैं किडियां और चिड़ियां
देखों वह हैं कहां पहुंचती
अब जो आसरा लिया जीना का
और  कुछ सवालों पर है चुप्पी साधी
बोला साधुओं को बुरा
क्या होगा उसका आशय पूरा
बताएं बबुआ का अभिसार
आज होगा पूरा
या रह जायेगा अधूरा
आने दो बस अब दस को
होगा क्या इसका बस दस को
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।