अव्यक्त
कुछ अव्यक्त
कुछ-कुछ अभिव्यक्त
देख उसे
थम जाता है वक्त|
कैसा दीवानापन
वश में नहीं मन
देख उसे
बढ़ जाती धड़कन|
देखे वो दूर से
भर जाती गुरूर से
कुछ कह ना पाए
अब तक हुजूर से|
रह ना पाऊं उन बिन
गुजरे ना अब दिन
रात गुजारू
तारों को गिन गिन|
आ गई वो रात
पहुंची उस की बारात
ईश्वर का आभार
मिला अनुपम सौगात|
रहा ना होश
हुए मदहोश
बीते अब पल
उनके आगोश|
— सविता सिंह मीरा