कविता

अव्यक्त

कुछ अव्यक्त
कुछ-कुछ अभिव्यक्त
देख उसे
थम जाता है वक्त|
कैसा दीवानापन
वश  में नहीं मन
देख उसे
बढ़ जाती धड़कन|
देखे वो  दूर से
भर जाती गुरूर से
कुछ कह ना पाए
अब तक हुजूर से|
रह ना पाऊं उन बिन
 गुजरे  ना अब दिन
रात गुजारू
तारों को गिन गिन|
आ गई वो रात
पहुंची उस की बारात
ईश्वर का आभार
मिला अनुपम सौगात|
रहा ना होश
हुए  मदहोश
बीते अब पल
उनके  आगोश|
— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]