कविता

कभी कभी

कभी कभी कुछ रिश्ते रेत की तरह मुट्ठी से फिसल जाते हैं
क्योंकि हम उनकी कसौटी पर खरा नहीं उतर पाते हैं
कभी कभी हम धारा के साथ बहने से रह जाते हैं
क्योंकि हम तो धारा के विपरीत बहने का साहस जुटाते हैं
कभी कभी हम न लड़ने पर कायर कहलाते हैं
लेकिन हकीकत तो यह है कि हम बिना लड़े ही जीत जाते हैं
कभी कभी हम बड़ी शिद्दत से दूसरों को चोट पहुँचाते हैं
लेकिन इस कोशिश में हम खुद ही घायल हो जाते हैं
कभी कभी भीड में रहकर भी हम अकेले हो जाते हैं
और कभी अकेले होकर भी सबको साथ पाते हैं
कभी कभी हम मंजिल की तलाश में बहुत दूर निकल जाते हैं
गर थोड़ी ईश कृपा हो जाये तो मंजिल अन्दर ही पाते हैं।
— सुधा अग्रवाल

सुधा अग्रवाल

गृहिणी, पलावा, मुम्बई