मत कर
छू के तु बुलंदी भी पछताएगा, मत कर
लालच में रिश्तों के सर को नीचा मत कर
ख़ुद अपने ही ऊपर ज़ुल्मत बेजा मत कर
सच को भी न देख सके इस तौर नशा मत कर
ग़ैरों से वफ़ा करना नेकी है कर लेकिन
ग़ैरों से निभाने में अपनों से दग़ा मत कर
बिन पानी, धूप हवा कुछ दिन में सुखा देंगे
बहकावे में ख़ुद को तू जड़ से जुदा मत कर
दिल के आईने पर पत्थर तो फैंक दिया
अब सहला कर इसको किर्चा किर्चा मत कर
दुनिया ज़ाती बातें अख़बार बना देगी
सबके आगे अपने ग़म का चर्चा मत कर
हर एक बशर तुझको भंगार समझ बैठे
बंसल ख़ुद को इतना ज़्यादा सस्ता मत कर
— सतीश बंसल