शिव के मुक्तक
(१)
महादेव शिव की दया,है हम पर उपकार।
जीवन यह सुख से भरा,स्वप्न किए साकार।
उमासंग कल्याणमय,हे प्रभु दयानिधान,
भोलेबाबा की सदा,बोलूँ मैं जयकार।।
(२)
शिवबाबा मंगलमयी,औघड़दानी नाथ।
सिर पर मेरे रख सदा,अंतर्यामी हाथ।
जीवन यह ग़म से भरा,दर्दों का आधिक्य,
बरसाना हरदम दया,नहीं छोड़ना साथ।।
(३)
भोलेभंडारी करूँ,मैं तेरा यशगान।
तुम हो मालिक़ तुम सदा,रखते सबकी आन।
नयन तीसरा कर रहे,जगपालन दिन-रात,
तेरा करता मैं सदा,हे!शिवजी नित ध्यान।।
(४)
जय जय त्रिपुरारी करूँ,हे !जग तारणहार।
सुख का देना तुम सदा,मुझको तो उपहार।
जीवन मेरा हो सफल,हे ! नाथों के नाथ,
कभी क्रोध करना नहीं,बरसाना नित प्यार।।
(५)
तुम कल्याणक देव हो,तुम मंगल के धाम।
मुझ पर करना तुम कृपा,भगवन् चारों याम।
कहीं और नहिं ठौर है,बस तेरा है द्वार,
वहीं माथ टेकूँ सदा,जो है तीरथधाम।।
(६)
अंधकार में शिव सदा,देते हैं उजियार।
भोले तो हैं नेह के,बहुत बड़े आसार।
सत्य,न्याय हरसा रहे,भोले का आशीष,
हर दुर्गुण उनसे सदा,जाते निश्चित हार।।
सुख का देना तुम सदा,मुझको तो उपहार।
जीवन मेरा हो सफल,हे ! नाथों के नाथ,
कभी क्रोध करना नहीं,बरसाना नित प्यार।।
(५)
तुम कल्याणक देव हो,तुम मंगल के धाम।
मुझ पर करना तुम कृपा,भगवन् चारों याम।
कहीं और नहिं ठौर है,बस तेरा है द्वार,
वहीं माथ टेकूँ सदा,जो है तीरथधाम।।
(६)
अंधकार में शिव सदा,देते हैं उजियार।
भोले तो हैं नेह के,बहुत बड़े आसार।
सत्य,न्याय हरसा रहे,भोले का आशीष,
हर दुर्गुण उनसे सदा,जाते निश्चित हार।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे