जाड़े की विदाई
मौसम ने ले ली है अंगड़ाई
पलाश की गुँचे डाली पे आई
गरमी ने हल्का दस्तक लगाई
जाड़े की कर दो अब विदाई
सूरज धरा के समीप है आया
किरणों ने हल्का तपिश बरपाया
दिन ने भी अपनी कद है बढ़ाई
छोटी रात की हो रही अगुवाई
चादर ने स्वेटर को समझाया
ट्रंक में जाने का समय आया
सौतन गरमी का अवतरण आये
घर पर चलो विश्राम हम पायें
ठंडक में शबनम थी रोई
प्रकृति ने भी कष्ट थी पाई
बेचारे पत्ते पर जमकर
बोझ तले था उसे दबाई
पर्वत से बर्फीली हवा थी जब आती
तन मन को ठंडक से थी ठिठुराती
आग सेंकने की चाहत में
चन्दन भी थी यहाँ जल जाती
चलो ठंडक की कर दें विदाई
ठंडक ने है बहुत ही रूलाई
जब गरमी करेगी हमें तंग
वापस बुलायेगें अगले वर्ष हम
— उदय किशोर साह