ग़ज़ल
जो भर-भर जाम देते हैं।
वो ही इल्ज़ाम देते हैं।
सितारों का स्वागत है,
धरा को शाम देते हैं।
लगाओ खूब धरती पर,
वृक्ष तो काम देते हैं।
सिर्फ साहिल ही किश्ती को,
सुखद आराम देते हैं।
कोई भी दे नहीं सकता,
वो वाहगुरू-राम देते हैं।
जवानी फिर नहीं आती,
सुमन वैगाम देते हैं।
यह बच्चों की है फुलवारी
पीढ़ी को नाम देते हैं।
हमेशा सूखे को बादल,
कुशल अंज़ाम देते हैं।
मेरे माँ बाप के साए,
ग़मों को थाम देते हैं।
दबाऊं पैर जब माँ के,
वे चारों दाम देते हैं।
भरे झोली आशीशों से,
जे पूरा दाम देते हैं।
चलें जब भीड़ में झण्डे,
नएं संग्राम देते हैं।
सिर्फ बालम-बलविन्दर को,
स्वयं उपनाम देते हैं।
— बलविन्दर ‘बालम’