काश!
रीमा के घर लंच करके मैं अभी डाइनिंग टेबिल पर ही बैठी थी, कि रीमा ने बाहर जाने के लिए जाली वाला दरवाजा खोलना चाहा. जाने क्या हुआ कि उसने दो-तीन बार दरवाजे को जोर-जोर से पटक-पटक कर बंद किया.
अंदर आई तो मैंने स्वभावतः इस उठा-पटक का कारण पूछा.
“यार एक मक्खी अंदर आने की बहुत कोशिश कर रही थी. ये अंदर घुस तो फटाक से जाती हैं, फिर बाहर निकलने का नाम ही नहीं लेतीं!”
“एक मक्खी से इतना डरती है!” मैंने कह तो दिया, पर उस दिन का वाकया फिर सामने आ गया. वैसे मैं उसे भूली ही कब थी!
“सिडनी में तीन दिन से लगातार झमाझम बारिश का पानी रुकने का नाम नहीं रहा था. उधर टोंगों में भी बाढ़ आई हुई थी. क्वींस्लैंड की तो हालत ही मत पूछो!” अब भी मेरी आंखों में बाढ़ आई हुई थी.
“क्वींस्लैंड! क्वींस्लैंड ही तो गए हुए थे बेटे के साथ रमेश जी! ऐसी बाढ़ आई थी, कि चारों ओर जल-ही-जल दिख रहा था. थल का कहीं नामोनिशान ही नहीं था.”
“ममा, आप समाचार देखकर चिंतित मत होइएगा. हम एक घर के ऊंचे-से चबूतरे पर सुरक्षित खड़े हैं. पापा दरवाजा खटखटा रहे हैं.” फोन का कनक्शन कट गया था.
सिर्फ फोन का ही नहीं मेरी किस्मत का कनक्शन भी कट गया था.
“ममा, पापा बाढ़ में बह गए हैं, पर आप चिंता मत करना. पापा बहुत अच्छे तैराक हैं न! मैंने पुलिस फोर्स को भी सूचित कर दिया है. फिर बात करता हूं.” थोड़ी देर बाद बेटे ने कहा था.
“बात तो फिर क्या कहता! रोता-बिलखता घर आया था. पुलिस फोर्स के अभ्यस्त तैराक भी असफल हो गए थे.” मक्खी की हालत सोचकर मेरी हालत खराब हुई जा रही थी.
“आसपास के क्षेत्रों में उनके फोटोज भेज दिए गए थे. दस दिन बाद पानी के ऊपर तैरते हुए पार्थिव शरीर को निकालकर फोटो से मिलाया और एक ताजा फोटो शिनाख्त के लिए हमें भेजा था.”
“काश! रमेश जी को मक्खी की तरह दुत्कारा नहीं जाता, तो आज मेरी भी दुनिया आबाद होती!”
“अच्छा मैं चलती हूं, हो सकता है इतनी तेज बारिश के कारण कोई मेरा भी दरवाजा न खटखटा रहा हो!” कहकर मैं रीमा की प्रतिक्रिया देखे बिना बाहर निकल आई थी.