दोहे
होली में मिलकर गले , मेंटें सभी मलाल ।
प्रेम मार्ग पर पग रखें, लेकर रंग गुलाल ।।
प्रीत का गाढा रंग औ ,शांति का होए अबीर ।
अमिट प्रेम से मन रंगे ,ऐसा भीगे चीर ।।
भूले -बिसरे मित्र ने ,भेजा खत में रंग ।
हमने भी अति प्रेम से ,लगा लिया निज अंग ।।
भावज रंग लगायिके ,हँसे ठहाका मार ।
शक्ल हुई लंगूर सी ,शर्माएं सरकार ।।
मिलने चली प्रभात से ,जब फाल्गुन की धूप ।
सुर्ख गुलाबी हो उठा ,लाज से उसका रूप ।।
— समीर द्विवेदी नितान्त