विश्वास
पार्क में आते हुए उसने ताजा समाचार सुना था- “ट्रक से होने वाली थी बच्चे की टक्कर, बंदे ने ‘सुपरहीरो’ की तरह बचा लिया.”
“बच्चे को तो ‘सुपरहीरो’ ने बचा लिया, मुझे कौन बचाएगा!” संजय सोच रहा था.
“फरिश्ते के समान आकर सहायता करने के भी अनेक किस्से सुने हैं, पता नहीं मेरे लिए कोई फरिश्ता बना भी है या नहीं!” संजय घुटनों में सिर छिपाकर सोच रहा था.
“फरिश्ता तो क्या, बापू ने भी तंगी का हवाला देकर हाथ खड़े कर दिए और नौकरी के लिए रिश्वत देने की बजाय अपने खेतों पर ध्यान देने की सलाह दी.”
“बापू भी अपनी जगह सही थे, खेतों पर ध्यान देने से फसल भी अच्छी होगी और रिश्वत देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का कलंक भी नहीं लगेगा.”
“दो-एक सौ की बात होती तो अम्मा अपनी बचत से दे देतीं, पर दो लाख रुपये कैसे जुटातीं! शहर जाकर बड़े भाई से मदद मांगकर देखने की सलाह दी.”
“भाभी ने दूर से ही देवर को आते देखकर “आ गया तुम्हारा निकम्मा भाई! जरूर कुछ मांगने आया होगा!” कहकर हल्ला मचाना शुरु कर दिया. वह उल्टे पांव वापिस आ गया. बड़े बेआबरू होकर——–”
“बचवा ऐसे काहे बैठत हो, केहू बात है तो हमको बतावा.” एकबारगी तो संजय को सचमुच धोती-कुर्ते वाले बाबा ‘सुपरहीरो’ या कि फरिश्ता लगे, दूसरे ही पल “यह मेरी मदद कैसे कर सकता है!” सोचकर आस का दीपक बुझा दिया.
“बचवा तनिक बताय देवा, किसी कूं कहबे से दुःख घट जात है!”
“यह अनपढ़ तो उलटी बात कर रहा है, मैंने तो यही पढ़ा है कि “सुनि अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लैहें कोय।” उसने मन में सोचा.
“बचवा कोई बात तो है! तू म्हारे बिटवा जैसन है!” बाबा पलथी मार कर उसके पास बैठ गए.
“बस, इती-सी बात! तनिक एक कागद पर सारी बात लिख देबो, म्हारा साहब चट से तेरो काम बना देबै.” संजय का दुखड़ा सुनकर बाबा ने कहा.
यह तो सचमुच ‘सुपरहीरो’ निकला! संजय को लगा.
संजय ने झट से कागज पर सब कुछ विस्तार से लिख दिया.
“अब घर जा बचवा, मन से तैयारी कर, चिंता छोड़ देबै. म्हारा साहब सब ठीक कर दैबे.”
संजय को उसका साहब फरिश्ता लगा. “अब सब ठीक हो जाएगा.” बहुत दिनों के बाद संजय के मुख पर मुस्कान ने डेरा डाला था.
सब कुछ भुलाकर वह तैयारी में लग गया. बहुत बड़े इम्तिहान जैसा साक्षात्कार अच्छा ही हो गया था, पर संजय का विश्वास डगमगा रहा था.
बापू की बात मानकर वह खेतों पर ध्यान देने लगा. इन्हीं खेतों को बेचकर दो लाख रुपयों का इंतजाम करने को बापू को कहा था. उसने खेतों से माफी मांगी. किसान के लिए अपनी जमीन मां से बढ़कर होती है.”
खेतों की दुआ थी या फरिश्ते का फरमान, नौकरी मिलने की चिट्ठी आ गई थी. भूले हुए धोती-कुर्ते वाले बाबा की याद आ गई.
“उसी पार्क में मिलेंगे बाबा” वह शहर चला गया.
“बाबा, मैं बहुत खुश हूं, आपके साहब ने मुझे नौकरी दिला दी.” सचमुच बाबा वहीं मिल गए थे.
“नहीं बचवा म्हारे साहब कूं कहबे की जरूरत ही नाय परी, थारा बिसवास ही थारा साथी बना.”
संजय ने अब तक सुना ही था कि विश्वास की जय होती है, अनपढ़ बाबा ने उसे इस बात का साक्षात प्रमाण दे दिया था.
विश्वास ही उसका ‘सुपरहीरो’ बना था और फरिश्ता भी!