लघुकथा – नया जन्म
लेबररूम से बाहर निकलते ही डाॅ. सुबोध मरकाम जी बोले- “भरत लाल ! बधाई हो। तुम बाप बन गये। अंदर जाओ। मिल लो। बड़ी मुश्किल से डिलवरी निपटी है। सब ठीक है। जाओ। दो जने का जन्म हुआ है।”
भरत लाल की खुशी का ठिकाना न रहा। कमरे में गया। नवजात को देख उसे आश्चर्य हुआ। नर्स से पूछा- “एक कहाँ है सिस्टर ?”
“क्या…कौन…?” नर्स ने नवजात को इंजेक्शन लगाते हुए कहा।
“मेरा दूसरा बच्चा ?” भरत लाल ने अपनी बात दुहरायी- “डाॅक्टर साब तो दो जने जनम लिये हैं; बताये।” नर्स डॉक्टर की बात समझ गयी। बोली- “ठीक तो बोले डाॅक्टर साहब।”
“फिर दूसरा ?” इधर-उधर देखते हुए भरत लाल बोला।
“वो तो है।” नर्स ने अर्द्ध-चेतना अवस्था में पड़ी ज्योति की ओर इशारा किया। तभी उसकी नजरें नवजात व परेशान लेबर-स्टाफ पर गयी। भरत लाल तुरन्त ज्योति से लिपट गया। उसे बात समझ आ गयी थी।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”