कविता

हिन्दू नववर्ष का आगमन

चैत्र मास से हिन्दू नववर्ष का होता आगमन है,
वसंतराज ऋतु का होता उल्लास मनभावन है।
गेहूं की बालियां देख हर्षित खुब होता किसान है,
धनी चुनार ओढ़ सरसों(खेत)लगातें मनमोहन हैं।
कू कू कोयल देती मानों सुमधुर मीठा सा तान है,
होता उल्लास पुरा संसार खुशियों में लगता मग्न है।
स्वरग से सुंदर लगती धारणी ऐसा ऐसा चमन है,
पतझड़ का अब मौसम गया आ जाता सावन है।
तीज त्यौहार शुरू हुए छा जाती खुशियां अपार है,
नववर्ष में चलती बसंत मंद मंद सुमधुर बयार है।
नववर्ष में कुछ ले लो अब जीवन में तुम संकल्प है,
अनाथों के साथ मिलकर मानाये नववर्ष त्यौहार है।
गरीब , बुजुर्गो आदि से भी करें स्नेह, प्यार ,दुलार है,
भुला कर राग व्देष नफरत दें खुशियों का उपहार है।
हिन्दू मुस्लिम भुलाकर खुशियों से मनाये त्यौहार है,
खुशियों का लग जाता नीत नया इस दिन भंडार है।
नववर्ष का सब करते बैसबरी से मानों इंतजार है,
इस दिन भुल जाते सब नफरत ,क्रोध अहंकार है।
एक दुसरे के गले मिल कर देते  सब बधाइयां है,
मिठाई ,फूल से सजते व्दार बनती रंगोलियां है।।
— कुमारी गुड़िया गौतम

गुड़िया गौतम

जलगांव, महाराष्ट्र