नारी
सॅंस्कार की तू प्रतिमूर्ति तुमने धरा सॅंवारा।
तुमसे ही अस्तित्व सभी का तुमको नमन हमारा।
प्रेम की बहती शुचि धारा सी अपने रव में बहती।
त्याग भाव वात्सल्य सजा हृदय में हर पल चलती।
ममता की मूरत कहलाती मातृत्व का ले उपहार।
नारी से जग सृजन होता नारी से चलता संसार।
नारी ही निज रिश्तों को पावन मनका पहनाती।
नारी ही अपने विवेक से अपना फ़र्ज़ निभाती।
वात्सल्य का सागर सिंचित प्रेम सुधा बरसाती।
कर देती सर्वस्व निछावर जीवन सुखद बनाती।
जिसने अर्पण कर डाला परिवार के हेतु जवानी।
नारी ने संघर्ष कड़ी की, कभी हार ना मानी।
नारी के कर्मों से रहा ना कोई क्षेत्र अधूरा।
धरती से अम्बर तक करती निज कर्तव्य को पूरा।।
सदा समर्पण भाव लिए दोनों कुल मान सजाती।
दर्द सभी हॅंस कर पी जाती वो नारी कहलाती।
— मणि बेन द्विवेदी