कविता

नारी

सॅंस्कार  की   तू   प्रतिमूर्ति  तुमने  धरा   सॅंवारा।
तुमसे ही अस्तित्व सभी का तुमको नमन हमारा।
प्रेम की बहती शुचि धारा सी अपने रव  में  बहती।
त्याग भाव वात्सल्य सजा हृदय में हर पल चलती।
ममता की मूरत  कहलाती मातृत्व का ले उपहार।
नारी से  जग सृजन होता नारी से  चलता संसार।
नारी ही निज रिश्तों को पावन  मनका पहनाती।
नारी ही अपने विवेक से  अपना फ़र्ज़  निभाती।
वात्सल्य का सागर  सिंचित  प्रेम सुधा बरसाती।
कर देती सर्वस्व निछावर जीवन सुखद  बनाती।
जिसने अर्पण कर डाला परिवार के हेतु जवानी।
नारी  ने  संघर्ष  कड़ी  की,  कभी  हार ना मानी।
नारी  के   कर्मों  से  रहा  ना  कोई  क्षेत्र  अधूरा।
धरती से अम्बर तक करती निज कर्तव्य को पूरा।।
सदा समर्पण भाव लिए दोनों कुल मान सजाती।
दर्द सभी हॅंस कर  पी  जाती  वो नारी कहलाती।
— मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- manidwivedi63@gmail.com