गज़ल
दिल से तेरी यादों को मिटाने से रहा मैं,
आवाज़ मगर तुमको लगाने से रहा मैं,
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खामोशियों को सुन सको तो शौक से सुनो,
किस्सा-ए-इश्क खुद तो सुनाने से रहा मैं,
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मांग लूँगा तुमको दुआओं में खुदा से,
हाथों को तेरे आगे फैलाने से रहा मैं,
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चाहा है तुम्हें तुमसे मगर कुछ नहीं चाहा,
खुद्दार हूँ, एहसान उठाने से रहा मैं,
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होगा असर चाहत में तो लौट आओगे खुद ही,
जाकर तेरे पीछे तो बुलाने से रहा मैं,
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अमानत में किसी और की मैं करके खयानत,
अब खुद को गुनाहगार बनाने से रहा मैं,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।