ग़ज़ल
उसे चीखें सुनाई दी बचाने को नही आया
किसी का दर्द ,उसकी आंख में आंसू नही लाया
जला दी आग नफरत की हजारो घर जलाने को
उसे तो चींख ही भाती हंसी का घर नही भाया
यहाँ लाशे,वहाँ लाशे गिनो कितनी कहाँ लाशे
उन्हे अर्थी,कफन,शमशान ,कन्धा मिल नही पाया
धुआं,लपटे,जले घर कह रहे गाथा तबाही की
न खाने को न पीने को कई दिन से नही खाया
मरी मां को उठाता है पिला दे माँ मुझे दूधू
कहां से दूध पीता दूध छाती से नही आया
चलो लाये अमन का ,चैन का माहोल तेरे घर
कहां जीवन दुबारा फिर ,करो इसको नही जाया
— शालिनी शर्मा