नारी सृष्टि है…
नारी केवल घर संसार ही नहीं सृष्टि है
सबके दिलों में राज करने वाली महारानी है
सबके चेहरे की दमकती सजी मुस्कान है
खुशियों की चमचमाती सूरज की वो किरणें है
स्नेह बन्धन से बांधती वह रेशम की डोर है
हर घर के देहरी की प्रज्वलित होती दीपक है
हमारे आंगन की वो सौभाग्य तुलसी है
अपने माता और पिता की राजदुलारी परी है
माँ के पवित्र कोख की अनमोल स्नेहमोती है
भाइयों के स्नेह बन्धन की प्यारी सी हमराज है
बहनों की नवेली अलबेली सखी सहेली है
पति की प्रेम की हरीभरी लता मधुमालती है
पूजा स्थल पर बजती हुई वो मधुर घंटी है
घर को एक मंदिर बनाने वाली गृहस्वामिनी है
हम सबके धैर्य व सम्बल की बागडोर है
सबके दुःख कष्ट को हरण करने वाली माँ है
राग द्वेष से परे मनभावन पुण्य सलिला है
नारी के प्रत्येक स्वरूप का अपना महत्व है
नारी तार तार सी बिखरती संबंधों को सवांरती है
सितारों से सजी मधुर सुर संगीत सी बजती है
कठिन समय पर सदैव ढाल बन जाती रक्षक है
नारी हरसिंगार सी सजी लता सुन्दर गुलाब है
जीवन को महकाती हुई दो दो वंश की बाग है
फूलों की सी नाजुक पर बाज की परवाज है
सदा ही अनजान रहती वो सबके दिल की राज है
त्याग की मूरत प्रेम प्यार ममता की जहान है
नारी जीवन में सदैव सम्मान की अधिकारी है
पर आज नारी ही नारी की दुश्मन बन जाती है
इसलिये ही नारी की हर जगह होती अपमान है
नारी तुम अबला नही हो अपनी शक्ति पहचानो
अपने अधिकार की लड़ो लड़ाई उत्थान तभी है
नारी के उत्थान में देश की महानता आधारित है
— राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ” राज “