मैं कोई अबला नहीं
मैं कोई अबला नहीं
मैं एक नारी हूँ
दुनिया की वंदिशे हो
या रूढ़िवादी जंजीरे
देखकर बाधाओं को
मैं ना कभी हारी हूँ।
मैं कोई अबला नहीं
मैं एक नारी हूँ
रब ने बनाया मुझे
खास ऐसी मिट्टी से
सांचा जैसा भी मिला
पल में ढल जाती हूँ
मैं कोई अपना नहीं
मैं एक नारी हूँ
मन में शितलता है मोम सी पिघलती हूँ
अंगारे बन जाती कभी
कभी दीये बन जाती हूँ
मैं कोई अबला नहीं
मैं एक नारी हूँ
जीवन को देने वाली
अबला नादान नहीं
अपनी पहचान सदा
खुद से मैं गढ़ती हूँ
मैं कोई अबला नहीं मैं एक नारी हूँ
स्वर्ग से निकलती वो गंगा की धारा हूँ
मानव के पापों को
हर पल में हरती हूँ
मैं कोई अबला नहीं
मैं एक नारी हूँ
मैं ही वो दुर्गा हूँ
मैं ही वह काली हूँ
मुश्किलों में करती मैं
शेर की सवारी हूँ
मैं कोई अबला नहीं
मैं एक नारी हूँ
नहीं वह भक्ति हूँ
मैं ही वह शक्ति हूँ
रूप है अनेक मेरे
कर्मों की गीता हूँ
मैं कोई अबला नहीं
मैं एक नारी हूँ
मैं ही वह राधा हूँ
मैं ही वह सीता हूँ
कृष्ण कन्हैया की
माता यशोदा हूँ
मैं ही ममता की छाया हूँ
मैं कोई अबला नहीं
मैं एक नारी हूँ
— ममता सिंह