कविता

नारी एक ज्वाला

नारी एक ज्वाला
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ममता की मूर्ति नारी
सृष्टि क्रम को गतिमान रखती नारी
ममता,दया करुणा की प्रतिमूर्ति
त्याग की देवी नारी,
स्व को भूल प्रेम रस बरसाती
दो कुलों का मान बढ़ाती
हर पल अपने सपनों की
आहुति देकर भीनहीं पछताती,
रिश्तों को बाँधकर
रखने का हर जतन करती
बनती शक्ति की मिसाल नारी।
मगर जब उसे और उसकी गरिमा को
चोट पहुंचाने की कोशिश होती है तब
ज्वाला बन जाती है नारी,
मुँहतोड़ जवाब देने के लिए
कमर कसकर मजबूती से
अपनी दृढ़ता, अपनी ताकत का
अहसास कराती है नारी।
वह समय अब नहीं रहा
जब नारी सिर्फ कोमल ,अबला
और कमजोर मानी जाती थी,
आज की नारी एक ज्वाला बन चुकी है,
हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921