कविता

लता जी

संघर्षों में निखरती रही
दुश्वारियों को हराती रही
कठिन समय में मजबूत बन
नित आगे बढ़ती रही।
माँ सरस्वती की वरदपुत्री
कोकिल कंठ की स्वामिनी
स्वर कोकिला कहलायी
सहृदय लता जी अमर हो गयीं,
अपने सुरों से विश्व पटल पर छा गई।
सधे कदमों से आगे बढ़ती रहीं।
उनका जीवन जितना कष्टकारी रहा
उनके सुरों का मान उतना ही बढ़ता रहा।
कदम दर कदम लता जी बढ़ती रहीं।
नाम बढ़ता चमकता रहा
सरलता दामन से सदा चिपका रहा।
अद्भुत व्यक्तित्व जिनका
सबको अपना बनाता रहा,
लता जी ने देह छोड़ा
मगर स्वर उनका ब्रह्मांड में
जीवंत रहेगा, जो जीवंत रहा।
लता दी जैसा न दूजा कोई होगा
न कोई आसपास ही रहा
न कोई भी हो सकता सदियों तक,
उनके स्वरों की अनुभूति
संसार में गूँजता रहेगा,
जो अब तक गूँजता रहा।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921