अधूरा चित्र
चित्रकार ने रमणी का रमणीय चित्र बनाया और उसकी खूबसूरती को निहारने लगा.
अकस्मात सुंदर नारी की दोनों आंखों से एक-एक अश्रु निःसृत होता हुआ दिखाई दिया. खूबसूरत स्त्री के मुख की खूबसूरती पर आंसू चांद के माथे पर कलंक की भांति लग रहा था.
चित्रकार के लिए आंसू को निरस्त करना तनिक भी कठिन न था, वह चाहे तो आंसुओं के झरनों को भी विलुप्त कर दे. उसने आंसू की विलुप्ति के लिए कूंची उठाई.
तभी “रुको” चित्र से आवाज आई. चित्रकार निस्तब्ध-सा हो गया और उसकी कूंची जहां-की-तहां निश्चेष्ट!
“किसलिए रुकूं?” चित्रकार की कूंची अपमानित थी.
“मेरे आंसुओं को मत रोको, इन्हें बहने दो.”
“कोई मुनासिब कारण!” चित्रकार की जिज्ञासा भी थी
“त्रेतायुग में पति ने 14 साल तक मेरे आंसुओं की निकासी पर प्रतिबंध लगाया था और मैंने बिना किसी शिकवे-गिले या उदासी के ऐसा किया भी, पर वह बात अलग थी, पति ने भी ऐसा ही किया था. वह हमारी तपस्या थी.”
“अब क्या शिकायत है?”
“शिकायत की बात मुझसे पूछो,” चित्रकार की बात पूरी होने से पहले चित्र से एक और स्त्री बोली, “मुझसे जबरदती मायके से मकान बनाने के लिए लाखों रुपये मंगवाए गए, उसके बावजूद मेरा वो हाल किया कि मुझे आत्महत्या करने को विवश होना पड़ा.”
“मेरे पति को बच्चे नहीं चाहिए, मैं मां बनने को तरसती रही.” एक और दुखियारी ने कहा.
“शादी को 20 वर्ष और 2 बच्चे, लेकिन पति का किसी दूसरी औरत से अफेयर, कई-कई दिन घर भी नहीं आते हैं, टोकने पर पिटाई कर देते हैं.”
“मेरे शरीर पर ज्यादा बाल होने की वजह से मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया.” एक पीड़िता की व्यथा थी.
“मुझे नहीं पता था कि मेरे पति की पहले से एक पत्नी और बेटी भी है.” एक-के-बाद एक पीड़िताएं अपनी व्यथा सुनाती रहीं.
“मैंने पति को उसे कार में चूमते हुए देखा और मेरे होश उड़ गए.”
“मेरा कितनी बार बलात्कार हुआ, कोई हिसाब है?”
“मेरी सास नहीं चाहती कि मैं अपने पति के साथ संबंध बनाऊं.”
“क्या हमको आंसू बहाने का भी हक नहीं है?” सबने एक साथ सवाल किया.
और चित्रकार को चित्र अधूरा छोड़ना पड़ा.
इसी लघुकथा पर लघुकथा मंच “फलक” द्वारा ऑडियो बना है, पेशे खिदमत है उसका लिंक-
https://www.youtube.com/watch?v=feKkNg84Me8
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