स्वास्थ्य

भस्त्रिका प्राणायाम

भस्त्रिका का अर्थ है धोंकनी। इसमें साँस किसी लोहार की धोंकनी की तरह चलती है, इसलिए इसे भस्त्रिका प्राणायाम कहा जाता हैं। यह हठयोग के षट्कर्मों में से एक है। सामान्यतया हम जो साँस लेते हैं, उसमें हमारे फेंफड़ों का बहुत कम भाग क्रियाशील रहता है। अधिकांश भाग में से हवा पूरी तरह नहीं निकलती और इसीलिए उनमें ताजी हवा नहीं भरती। इस कारण फेंफड़े अपना कार्य पूरी तरह नहीं कर पाते। फेंफड़ों के निष्क्रिय भागों में रोगों के कीटाणु पलते रहते हैं। भस्त्रिका प्राणायाम का उद्देश्य है फेंफड़ों को पूरी तरह खाली करना और भरना। इसके लिए लगातार गहरी साँसें ली और छोड़ी जाती हैं।

भस्त्रिका प्राणायाम कई प्रकार से किया जाता है। आचार्य रजनीश (ओशो) अपने शिष्यों को यह प्राणायाम लगातार 10-12 मिनट तक कराते थे। इससे पूरे शरीर का अच्छा व्यायाम भी हो जाता है। परन्तु इस पद्धति में एक खतरा भी है कि शरीर बुरी तरह थक जाता है और कभी-कभी दिमाग पर बहुत जोर पड़ जाने के कारण सिर चकराने लगता है। इसलिए यह प्राणायाम इतनी देर तक लगातार न करके बीच-बीच में विश्राम देते हुए करना अधिक लाभदायक है। स्वामी शिवानन्द जी महाराज की पद्धति इसमें सबसे अधिक उपयुक्त है। इससे प्राणायाम की मात्रा पर अपने आप नियंत्रण हो जाता है, थकान भी नहीं होती और इसका पूरा लाभ भी मिल जाता है। यहाँ मैं इसी पद्धति को बता रहा हूँ।

उचित आसन में बैठकर पहले साँस पूरी तरह निकाल दीजिए। साँस छोड़ते हुए पेट पिचकना चाहिए। अब गहरी साँस बलपूर्वक खींचिए, इतनी कि फेंफड़ों में अच्छी तरह हवा भर जाये। अब बिना रोके तत्काल ही साँस बलपूर्वक पूरी तरह निकाल दीजिए। इस प्रकार तीन से पाँच बार साँस छोड़ने और भरने से एक चक्र पूरा होता है। प्रत्येक चक्र के बाद दो-तीन साँसें साधारण तरीके से लेकर विश्राम कर लेना चाहिए। प्रारम्भ में ऐसे केवल तीन चक्र कीजिए। फिर हर सप्ताह एक चक्र बढ़ाते हुए अपनी शक्ति के अनुसार 7 से 11 चक्रों तक पहुँचना चाहिए। इसके बाद उतने ही चक्र रोज करते रहना चाहिए।

वैसे इसकी एक सरल विधि और है। इसमें पहले एक मिनट तक धीरे-धीरे गहरी साँसें ली और छोड़ी जाती हैं। फिर एक मिनट तक थोड़ी तेजी से गहरी साँसें ली और छोड़ी जाती हैं। इसके बाद जितने भी समय करना हो उतने समय तक खूब तेजी से गहरी साँसें ली और छोड़ी जाती हैं। यह प्राणायाम करते समय यदि आप थक जायें या समय पूरा हो जाये या सिर में चक्कर आने लगें, तो तत्काल रुक जाना चाहिए और विश्राम करना चाहिए।

इस प्राणायाम से बहुत लाभ होता है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि खून बहुत जल्दी शुद्ध होता है और सभी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ यदि निष्क्रिय या कमजोर हों तो अति सबल और सक्रिय हो जाती हैं। श्वाँस नली पूरी तरह साफ हो जाती है। इससे खर्राटे भी बन्द हो जाते हैं। यह प्राणायाम जल नेति के बाद नाक में भरा हुआ जल सुखाने के लिए भी किया जाता है। इस प्राणायाम का लाभ लगभग 1 माह बाद दृष्टिगोचर होता है। इसलिए धैर्यपूर्वक करते रहना चाहिए। इसमें मनमानी नहीं करनी चाहिए।

— डॉ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]