कविता

युद्ध

1. वर्चस्व की लड़ाई में सर्वस्व भस्म कर रहा 
कोई जिंदा लाश बन गया, तिल-तिल के कोई मर रहा 

2. है नाक को बचाने में, क्यूँ सर कलम हैं हो रहे ?
बमों की गर्जनाओं का ये शोर जाने कब थमे ?

3. शहर वीरान हो गया, हैं बस्तियां उजड़ गईं 
नव कोंपलें खिली नहीं, वसंत में ही झड़ गईं

4. रूदन कहीं, क्रंदन कहीं, है दासता, बंधन कहीं 
ये शांति मरघट की है, जो कह रही जीवन नहीं 

5. अनाथ बच्चे पूछते, कहाँ हैं मेरे बाप-माँ ?
गर जीत भी गए जो तुम, जवाब दे सकोगे क्या ?

6. छोटी सी ही तो बात है, ना मैं सही, ना तुम ग़लत 
ये जंग होती ही नहीं, जो जान लेते तुम फ़क़त 

7. विध्वंस को अब रोक लो, इस युद्ध को विराम दो 
सृजन का बीज बो दो तुम, बस शांति का नाम लो 

— गगन मेहता, रांची (झारखंड)

गगन मेहता

अपने लेखन की औपचारिक शुरुआत 2016-17 से की I वर्ष 2017 में इनकी पहली किताब “सफलता सप्तक” आने के साथ-साथ इन्होंने हिन्दी में कविताएं लिखनी जारी रखी और राँची, झारखंड के अलग-अलग मंचों में अपने कविताओं की सफल प्रस्तुति भी देते रहे I वर्ष 2020 में इंदु तोमर द्वारा संपादित हिन्दी कविताओं के संकलन “संकल्प” में इनकी कविता “जब भी कोई संकल्प करूँ” प्रकाशित हुई तथा उसी वर्ष स्वाध्या पब्लिकैशन की इंग्लिश बुक “स्वाध्या बेस्ट माइक्रो स्टोरीस” के बेस्ट 50 स्टोरीस में जगह बनाते हुए इनकी लिखी अंग्रेजी कहानी “री-टर्न गिफ्ट” प्रकाशित हुई I फिलहाल अपनी गृहनगरी रांची में एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था में कार्यरत हैं, साथ ही, गायन और स्टैन्ड अप कॉमेडी कार्यक्रमों में भी शिरकत करते हैं I इनकी दूसरी पुस्तक “सतरंगी रे” जल्द ही प्रकाशित होने वाली है I पता – रांची, झारखंड, मोबाईल- 9911866809, email- [email protected]