कविता

फाग

 

समय से सब बदल गया
हम बदले
तीज त्योहार भी बदले
न पहले सी होली
न पहले सी दिवाली
न दिल में पहले सी वो रंगत रही
न अब टोली रही न टोला रहा
जहां मिल सब मचाते थे हुंडदंग
उड़ाते थे रंग और गुलाल
करते थे लोगों के गालों को लाल
न रही ढोल नगाड़ों की थाप
उन पर नाचती मस्ती की टोलियां
न रहा भाभी देवर का फाग
न जाने सब कहां खो गया
लोग कैद हो गए घरों में
लोग रह गए अकेले

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020