नो कमेंट प्लीज़
गांधी जी के तीन बंदर कुछ महत्त्वपूर्ण संदेश देते हैं।जो बंदर अपनी आँखों को अपने हाथों से बंद किए हुए है; वह किसी का बुरा नहीं देखने का संदेश देता है।दूसरा अपने दोनों कानों को बंद किए हुए है ; वह किसी की कोई बुरी बात नहीं सुनने का संदेश दे रहा है और तीसरा बंदर अपने मुख को बंद किए हुए कोई बुरा शब्द नहीं बोलने की सीख दे रहा है। यदि मैं गांधी जी की जगह होता तो एक बंदर और पालता औऱ उसे अपने हृदय पर हाथ रखकर उससे कहता कि किसी के लिए बुरा सोचो ही मत।क्योंकि ये हॄदय ही तो है सारे फसादों की जड़ ; ये यदि बुरा विचार नहीं करेगा तो बुरा देखने , बुरा सुनने औऱ बुरा बोलने की स्थिति ही क्यों पैदा होगी ? दिल साफ़ तो सब माफ़! ये दिल ही है ; जो हमारे कान,जुबान और जिह्वा को दोषी बना देते हैं ।यहीं तो है सबका कोषागार , मुख्य कार्यालय है।
सभी पर कमेंट करता रहता हूँ। टिप्पणी करता रहता हूँ।नर,नारी ,व्यापारी ,अधिकारी, चोरी-चाकरी, ग़बन-व्यभिचारी, नकारी – सकारी, नाड़ी – अनाड़ी,यहाँ तक कि शैतान और भगवान भी नहीं छूटते। परंतु जब वह गबन ,चोरी, व्यभिचार, अपहरण, हत्या , डकैती करने के बाद जब मुँह लटकाए हुए चार पहिए की लंबी- सी गाड़ी से उतरता है औऱ पत्रकार जी के सभी प्रश्नों के उत्तर ‘नो कमेंट प्लीज़!’ करके देता है ; उसके ऊपर ये अँगुली रूपी कोमल लेखनी मौन तो नहीं होती ,पर बहुत कुछ सोचने के लिए बाध्य हो जाती है।
ये देखकर कि क्या यही है मेरे सपनों का भारत ? जहाँ ईमानदारी को छोड़कर हर दुष्कर्म में हासिल है महारत! कमेंट तो तब करेंगे ,जबकि उनमें अपने श्याम वर्णी चेहरे दिखाने की हया बची हो! इंसान के प्रति लेश मात्र दया बची हो! हृदय के मरुस्थल में काशी ,प्रयागराज औऱ अयोध्या बची हो? वे निरुत्तर हैं। अब वे किसी की कुछ भी सुनना, देखना और बोलना नहीं चाहते ! चाहेंगे भी क्यों? इसलिए ‘नो कमेंट’ से किस्सा खत्म। इन पर कमेंट करने की अपनी भी हिम्मत कहाँ है? ये तो यूक्रेन पर रूस की तरह, जेलेन्स्की पर पुतिन की फ़तह बनकर छाए हुए हैं। कोई अपनी जुबान खोले भी तो कैसे? स्वयं कुछ भी कहेंगे ,बोलेंगे; रस में भी विष घोलेंगे ,पर और कोई बोले तो अपनी डंडीमार तराजू में ही तोलेंगे।
इनका तो वही हाल है,चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का।इनको पैदा करने वाला बाप और माँ भी किसी विशेष (मैं विषैले क्यों कहूँ?) तत्त्व से बने हुए होंगे , तभी तो ऐसी औलाद धरती पर लाए।इतना तो रावण जी के पिता विश्रवा औऱ माता कैकसी भी रावण जी को पैदा करके नहीं पछताए होंगे;जितने इनके मम्मी पापा पछताते होंगे। अब क्या पता ,यदि वे भी उन विचित्र धातुओं के बने होंगे तो उन पर भी सारा पानी ढुलक जाता होगा।वही चिकने घड़े । इन पर भला कोई कमेंट कर के भी क्या कर लेगा? वाटर प्रूफ वे , फायर प्रूफ वे ,हर बात प्रूफ वे।इसलिए इन पर कमेंट करके मैं ही हॉट वाटर में क्यों गोते लगाऊँ ? कमेंट तो कोई तब करें ,जब इनके सीमेंट जैसे दिल पर कोई चीज असर करती हो! जैसे पानी गिराने से सीमेंट पत्थर बन जाता है , वैसे ही ये कोयले से कोहिनूर बन जाते हैं,सर्वथा निरापद। सब कुछ झेलने के लिए सक्षम।
यही कारण है कि साठ के बाद इन पर यौवन की खुमारी सवारी करती है। ‘साठा में पाठा’ होने की कहावत तो सही अर्थों में यही चरितार्थ करते हैं।लाल लाल गाल! टाँगें भरती हुईं लम्बी -लम्बी उछाल! जहाँ भी होते हैं ,सब जगह कमाल। धमाल ही धमाल।कहीं बवंडर कहीं बबाल।सब जगह बनते हुए सवाल। हर पाँच साल में यौवन का नवीनीकरण।हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी , हार कर भी हारने ,हार मानने के लिए तैयार नहीं। सब गलत ,वे सही । दिमाग का बनाते हुए दही । अरे! अपना नहीं, जनता का।हमेशा (देह और जूता) ‘ताने’ हुए। हैं तो ‘नेता’ जी माने हुए।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’