होली है
स्नेह-रंग में प्रेम-रंग को
मिला सको तो होली है।
प्रीत-गुलाल से सबके मन को,
रंग सको तो होली है॥
नेह-अबीर से वैर-मलाल को,
हटा सको तो होली है।
वैर-बीन पर प्रेम-तान को,
बजा सको तो होली है॥
रूठे हुए को पुनः गले से,
लगा सको तो होली है।
तम-सुरंग में आस-दीप को,
जला सको तो होली है॥
प्रयासों से लक्ष्य-स्तम्भ को,
टिका सको तो होली है।
कांटों में भी सुमन-सुरभिमय,
खिला सको तो होली है॥
अंधविश्वासों के शिखरों को,
हिला सको तो होली है।
पतझड़ में भी वसंत-आभा,
दिखा सको तो होली है॥
दुख को सहला, सुख को पाना,
सिखा सको तो होली है।
पिचकारी को श्याम की वंशी,
बना सको तो होली है॥
आदरणीय लीला दीदी, सादर प्रणाम।
वैर-बीन पर प्रेम-तान को,
बजा सको तो होली है॥
रूठे हुए को पुनः गले से,
लगा सको तो होली है।
बहुत सुन्दर
चंचल जी, रचना को आप जैसी महान कवयित्री का आशीर्वाद मिलना हमारी सौभाग्य है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन.