ध्वनि अनसुलझे रिश्तों की…
जब…,
सभी वस्तु
रिक्तता से भर
चुका होगा…
जब…,
समस्त संसार
अंधकार में
डूब चुका होगा…
तब…,
समस्त संसार
मौन हो चुका होगा…
और…,
उस वक्त भी मैं
तुम्हें सुन रहा होऊंगा…
तुम्हारे होने और
ना होने में जो
फर्क पड़ेगा
सो तो पड़ेगा ही…
जीवन के क्या
मायने होंगे पता नहीं…
परंतु…,
तुम्हारी आवाज़
हमेशा गूंजती रहेगी
मेरे आस-पास
घूमती रहेगी…
हर पल
हर क्षण
मेरे कानों में
ध्वनि…
अनसुलझे रिश्तों की…!
— मनोज शाह ‘मानस’