गज़ल
यूँ तो सब अपने यहां थे कोई बेगाना नहीं
दौर-ए-गर्दिश में किसी ने मुझको पहचाना नहीं
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थी खबर हमको बहुत दुश्वारियां हैं राहों में
लाख समझाया मगर दिल ने कहा माना नहीं
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सुन रहे हो जिसको इतनी गौर से तुम बैठकर
हकीकत-ए-जीस्त है वो कोई अफसाना नहीं
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वक्त आएगा तो खुद-ब-खुद सुलझ ही जाएगी
कितनी भी मुश्किल हो बड़ी ऐ दोस्त घबराना नहीं
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खटखटाकर थक गए हर एक दरवाज़ा जो हम
आ गए दर पर तेरे कहीं और अब जाना नहीं
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।