आत्मकथाओं की समीक्षा पर पुस्तक
डॉ. शारदा प्रसाद एवं डॉ. अशोक अभिषेक के सम्पादन में हाल ही में एक पुस्तक प्रकाशित हुई है, जिसका शीर्षक है- “आत्मकथा : आलोचना के निकष पर”। इसमें कई प्रमुख आत्मकथाओं की समीक्षा की गयी है। आत्मकथाओं की समीक्षा करना एक नयी बात है और इसके लिए सम्पादक द्वय और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
इस पुस्तक में जिन आत्मकथाओं की समीक्षा की गयी है, उनमें प्रमुख हैं- रमणिका गुप्ता की आत्मकथा ‘आपहुदरी’, प्रभा खेतान की आत्मकथा ‘अन्या से अनन्या तक’, डॉ. श्याम सुन्दर दुबे की आत्मकथा ‘अटकते भटकते’, तथा मन्नू भंडारी की आत्मकथा ‘एक कहानी यह भी’। इनके अलावा अन्य कई आत्मकथाओं का साहित्यिक दृष्टि से मूल्यांकन भी किया गया है। समीक्षाएँ और लेख विभिन्न लेखकों ने लिखे हैं।
इस पुस्तक में ‘जय विजय’ के सम्पादक डॉ. विजय कुमार सिंघल की आत्मकथा के प्रथम भाग “मुर्ग़े की तीसरी टाँग उर्फ़ सुबह का सफ़र” की भी विस्तृत समीक्षा आठ पृष्ठों में छापी गयी है। इसमें लेखक ने अपने विद्यार्थी जीवन की प्रमुख घटनाओं और संघर्षो की कहानी अपनी विशिष्ट शैली में लिखी है। समीक्षक ने इस आत्मकथा की बहुत प्रशंसा की है। यह समीक्षा डॉ. अभिनेष जैन ने की है।
मैं सम्पादकों तथा समीक्षक को इस हेतु हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल
फाल्गुन शु. ४, सं. २०७८ वि. (६ मार्च २०२२)