उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर भी जिंदगी महत्वहीन क्यों ?
विद्यार्थी किसी समाज अथवा देश की रीढ़ हुआ करते हैं । इसलिए उनका विकास अथवा पतन समूचे देश का विकास अथवा पतन माना जाता है इसलिए तुम्हें पढ़ने -लिखने में विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि तुम अनपढ़ रह गए तो हमारा देश भारत कमजोर हो जाएगा । आज समाज में शिक्षित युवाओं की बेहद आवश्यकता है पर आधुनिक युग में शिक्षा का चरम उद्देश्य रोटी का सवाल समझता जाता है । इसलिए हमारे बच्चे 12 कक्षाएं पास करके रोज़गार की तलाश में बहुतायत संख्या में विदेश जाने के प्रयासरत हैं । इसमें अपने देश की पूँजी बाहर जा रही है । बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ आर्थिकता के लिए कुछेक घंटे भी दिए जाते हैं ।
पर फिर भी पैसे पूरे नहीं होते माँ-बाप ऋण लेकर , जमीन बेचकर, गहने इत्यादि बेचकर हर महीने अपने बच्चों को बहुत मुश्किल से धन भेजते हैं । पी. आर मिलने पर ही बच्चे अपने आप पर निर्भर होना शुरु कर देते हैं । माँ-बाप का लोगों से लिया ऋण उतारने , फ्लैट किराया , कार आदि की किश्तें , बैंक लोन बस यह सभी कुछ कमाया यूँ ही निकल जाता है । पर फिर भी बाहर जाने की होड़ सी लग गई है । लड़कियाँ अव्वल हैं । लड़के पढ़ाई की ओर ध्यान ही नहीं देते । आईलटस पास लड़कियाँ इधर लड़को से विवाह कर विदेश चली जातीं हैं । पर अफसोस छल-कपट, धोखाधड़ी यही सब कुछ हो रहा है । क्यों ? इनमें कई कमियाँ देखने को मिल रहीं हैं । धोखेबाजी के केस दर्ज हो रहे हैं । ठगे जाने वाले लोग मौत को गले लगा रहे हैं । इसमें भी बच्चों विशेषतया लड़को को हानि हो रही है । पैसा नष्ट, नशे करने की शुरुआत।
यहाँ से बात उल्लेखनीय है कि विद्यार्थी अपने जीवन की आवश्यकताओं को पूरा न कर सके तो उनका पढ़ना बेकार है । यही कारण है कि आजकल उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करके भी वे बेरोजगार हैं यहाँ बेकारी है । बच्चों को यथोचित यथासंभव अच्छी नौकरी नहीं मिलती । वे अपने आपको मासूमियत समझते लगते हैं । विद्यार्थी पढ़ाई करने के बाद रोजगार न मिलने के के कारण आत्महत्याओं की ओर अग्रसर होने लगते हैं । क्या शिक्षा हमें आत्मघात की ओर ले जाती है ? इस समय विद्यार्थी निराशा में हैं । हताश-निराश होने पर खमोश हो रहे हैं । लगातार अकेले रहकर 21 दिन से 40 दिन उनके दिमाग में एक ही विचार घूमता रहता है । अन्तत: वे अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं , अपने माँ-बाप को अकेले रोता छोड़कर।
विद्यार्थी अपने आपको कोसता है की उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करके , उन्हें क्या मिला । प्राइवेट सेक्टर इन बच्चों का बहुत ज्यादा शोषण करते हैं। उनको पूरा वेतन तक नहीं दिया जाता समय अवधि से अधिकाधिक काम लिया जाता है । तो आप खुद समझ सकते हैं कि विद्या से बच्चों को क्या मिल रहा है । माँ-बाप का तो क्या अपना ही गुजारा ठीक ढंग से नहीं होता । तो विद्या से कहाँ प्रकाश होता है ।
इसके अतिरिक्त पारिवारिक जीवन की समस्याओं से निपटना कोई आसान काम नहीं । कोई पढ़कर जाॅब प्राप्त कर लेता है और कोई अशिक्षित रह जाते हैं । घर में रोजाना का क्लेश होना क्या औचित्य कहा जा सकता है ।
नि:सन्देह पढ़ाई बेहद आवश्यक है । इसके बिना इन्सान अधूरा है । बल्कि जानवर तुल्य है । इसलिए देश के नागरिक को पढ़ाई करनी जरूरी है । हाँ, हर बच्चा पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाता । इससे अच्छा है प्रायोगिक काम सीखना यानि हाथ के किसी काम को निपुणता से करना । किसी विशेष कार्य में एक्सपर्ट होना । इससे अनपढ़ इन्सान कभी भी भूखा नहीं मर सकता । इससे उसके रोजाना की कमाई पढ़े-लिखे इन्सान से कहीं अधिक होगी । पर कारीगर को , दुकानदार को भी अब पढ़ना अनिवार्य है । तभी जीवन चक्र सही चलेगा अथवा आदमी भूखा मरेगा । इसलिए यह कहना अनुचित नहीं कि हम पढ़ाई ही न करें । पर याद रखो पढ़ना- लिखना और हिसाब लगा लेना ही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य नहीं वस्तुत: शिक्षा का का अर्थ शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक विकास ही है । इन्हीं तीनों के विकास ही व्यक्तित्व का निर्माण ही शिक्षा का सार माना जाता है । श्री गुरुनानक देव जी का व्यक्तित्व कितना ऊँचा तथा महान् था ।
अन्तत: यही कहा जा सकता है कि उच्च शिक्षा महत्वहीन होती जा रही है । बेकारी में बेहताशा संख्या में वृद्धि हो रही है । शिक्षित व्यक्ति को भी खाने के लाले पड़ रहे हैं । प्रत्येक क्षेत्र में उनका शोषण हो रहा है । बी.ए, एम.ए तो क्या पी.एच.डी. व अन्य उच्च स्तरीय डिग्रियाँ महत्वहीन होकर रह गईं है । अत: विद्या है तो महत्वपूर्ण पर प्रायोगिक परीक्षा होनी अत्यावश्यक है । हाँ, विद्या के बिना जीवन अधूरा भी है । हाथ का सीखा काम सर्वोत्तम है ।
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन