परिचय से परिणय की ओर
परिचय एवं पहचान दोनों ही में भिन्नता हैं
क्योंकि परिचय में तो एक आवरण छिपा है
पहचान में व्यक्तित्व की सुगन्ध भी छिपी है
परिचय से आगे बढ़ने पर रिश्ता बन जाता है।
परिचय सम्मेलन का आयोजन किया जाता है
विवाह योग्य युवक-युवती का परिचय होता है
दोनों के माता-पिता जब आपस में मिलते है
फिर रिश्ते के लिए एक कदम आगे बढ़ते हैं।
युवक को बहन का विवाह पहले करना है
युवती कहती हमें भैया का विवाह करना है
परिवार के संस्कार पर ध्यान नहीं जाता है
ऊपरी चमक देख सबका मन खिल जाता है।
फिर कहता जल्दी क्या है कार बंगला ले लूँ
फिर इससे भी अच्छी मिलेगी तब कर लेंगे
युवती को लगता है शहर, एकल परिवार मिले
नौकरी,धनवान और आधुनिक परिवार ही चले।
कोई कुंडली न मिलने का बहाना बनाता है
कोई अंबानी अडानी सा परिवार चाहता है
ये नखरे करते तो उम्र भी बीतती जाती है
अंत में समझौता करने की ही बारी आती है।
— मीना जैन दुष्यंत