कविता

शब्द चीत्कार कर काव्य-देह धारण करते हैं

जब २५, जनवरी को
‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ पर
अशिक्षित और गंवार मतदाताओं को
चुनाव जीतने के लिए धाक-धमकियां देकर
झूठी कसमें खाकर और झूठे वादे कर
रुपयों से खरीद लिया जाता है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
जब ८, मार्च को
‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पर

नशे में चकनाचूर और कामांध युवकों द्वारा
किसी मासूम लड़की पर रेप किया जाता है
और वह न्याय के लिए दर-बदर की ठोकरें खाती है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
जब २१, मई को
‘राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी’ दिवस पर
आतंकवादियों द्वारा
निर्दोषों को धड़ाधड़ गोलियों से उड़ा दिया जाता है,
लाशों के ढेर हो जाते हैं
और खून की नदियां बहने लगती हैं
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
जब १७, जुलाई को
‘अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस’ पर
अदालत में गुनहगार झूठे गवाहों
और लक्ष्मी के बलबूते पर मुकदमा जीत जाता है
और निर्दोष को तख्ते पर चढ़ा दिया जाता है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
जब १७, सितंबर को
‘राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस’ पर
पढ़ा-लिखा और डिग्रीधारी युवक
नौकरी के लिए दर-बदर की ठोकरें खा-खा कर
आखिर ज़िंदगी से हार कर
पंखे पर लटक कर मृत्यु का वरण करता है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
जब १,अक्टूबर को
‘अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस’ पर
संतान के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले
वयोवृद्ध माता-पिता को
निर्लज्ज और निष्ठुर संतान द्वारा
वृद्धाश्रम में भेज दिया जाता है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं….
जब ११, अक्टूबर को
‘अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस’ पर
कानून विरुद्ध गर्भ परीक्षण कराकर
गर्भ में पल रही बालिका को
जन्म से पहले ही मौत के घाट उतार दिया जाता है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
जब १७, अक्टूबर को
‘अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस’ पर
संपूर्ण अभावग्रस्त जीवन जीने वाला
गरीबी से पीड़ित व्यक्ति
भूख से तड़प-तड़प कर अपनी जान छोड़ देता है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं….
जब ३१, अक्टूबर को
‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ पर
सियासत बंद कमरे में चुनाव जीतने के लिए
मंदिर-मस्जिद और हिंन्दु-मुसलमान के नाम पर
दंगे-फसाद का खौफ़नाक आयोजन करती है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
जब २०, नवंबर को
‘अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस’ पर
नर-राक्षसों द्वारा
निर्दोष और मासूम बच्चे पर
सृष्टि विरुद्ध कृत्य किया जाता है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
जब २६, नवंबर को
‘दहेज निषेध दिवस’ पर
अरमानों की डोली में बैठकर ससुराल आई
नवविवाहिता स्त्री के परिवार की ओर से
अपेक्षित दहेज ना मिलने पर
केरोसिन छांट कर जिंदा जला दिया जाता है
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं….
जब २४, दिसंबर को
‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ पर
कायदे-कानून से अनभिज्ञ और गंवार उपभोक्ता को
व्यापारी द्वारा एक्सपायरी डेट वाली वस्तुएं बेच कर
उसका शोषण किया जाता है
और उसे न्याय नहीं मिल पाता
तब शब्द चीत्कार कर
कागज़ पर काव्य-देह धारण करते हैं…
— समीर ललितचंद्र उपाध्याय

समीर उपाध्याय

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